शनिवार, 28 दिसंबर 2013

बिदाई

बिदाई

हमारे देश में बिदाई अपने आप में एक अत्यंत भावुक प्रसंग है। विवाह के उपरान्त वधु की बिदाई बहुत ही मार्मिक हो जाती है अगर कोई बिस्मिल्ला खां साहब की शहनाई बजा दे। रफ़ी साहब का बाबुल की दुआएं लेती जा… अगर बज गया तो तय है कि स्वयं वर, वधु से ज्यादा भावुक हो जाये। कई बार तो वधु को अपना रुमाल देने के बजाय वो खुद उसके आँचल से अपने आंसू पोंछने लग जाता है। अपने विवाह के समय मैंने जब दो शर्तें रख दीं कि बारात का स्वागत भले शहनाई से कर लीजिये पर विदाई कतई नहीं। और ये रफ़ी साहब वाला गाना कहीं से भी कान में नहीं पड़ना चाहिये। धर्मपत्नी के घर वाले चौंक गये। कैसा बंदा है दहेज़ के युग में उट-पटांग सी डिमांड कर रहा है। मेरी मज़बूरी थी कि मै पहले ही दिन अपनी भावुकता का प्रदर्शन करने से बचना चाहता था। पर बिदाई के वक्त इंसेंसटिविटी की इन्तहा हो गयी। अगर टीवी-फ्रिज की डिमांड होती तो लोग याद रखते, मेरी छोटी से ख्वाहिश को सब भूल गये। शहनाई वाले ने बिदाई को यादगार बनाने के लिये बाबुल की दुआएं…धुन छेड़ दी। फिर मेरा क्या जुलुस निकला होगा इसका अन्दाज़ आप सब लगा सकते हैं। बीवी और सास मुझे चुप कराने में लगीं थीं और ससुर बेचारे कन्धा छुड़ाते भाग रहे थे।  

पर यहाँ बिदाई का जिक्र नौकरी से रिटायरमेंट के सन्दर्भ में है। बिदाई विवाह के अवसर पर हो या रिटायरमेंट के, दुखद न भी कहें, तो कुछ अजीब सा अनुभव तो है ही। वहाँ बाप खुश है कि बेटी से फुर्सत मिली अब वो गंगा नहायेगा। यहाँ साथी खुश हैं कि एक निपटा। लेकिन मज़ा ये है दोनों असीम दुःख प्रदर्शित करना चाहते हैं। आम आदमी का रिटायरमेंट भी आम होता है और बिदाई भी। भले सब लोग चंदा दे दें पर विदाई समारोह तक जाने का समय निकाल पाएं ये ज़रूरी नहीं। पर ख़ास आदमी, जो अमूमन बॉस हुआ करता है, के रिटायरमेंट और बिदाई को ख़ास बनाने के लिए उसके चेले कोई कोर-कसर  नहीं छोड़ते। हॉल खचाखच भर जाता है सिर्फ ये देखने के लिए कि चेले जो अब तक बॉस के साथ मौज की रोटियाँ तोड़ रहे थे, कैसे विलाप करते हैं। बॉस जिसके शरीर में पद के कारण जो कलफ़ सी अकड़न आ गयी थी, वो कैसे जाती है।

जिस बॉस ने खौफ़ कायम करके काम लिया हो वो ये भी जानता है कि लोग डर से नतमस्तक थे और मौका पड़ते ही बगावत कर सकते हैं। ये बगावत कोई क्रांतिकारी बगावत नहीं होती। बस लोग निर्णय ले लेते हैं कि गुंडई करने वाले बॉस को फेयरवेल नहीं देनी। रिटायरमेंट तो होना ही है पर फेयरवेल मिलेगी कि नहीं ये निर्णय जनता लेती है। एक तरह से ये आपकी इंटिग्रिटी रिपोर्ट होती है। बॉस बनने के बाद आप पद में निहित अपनी शक्तियों का दुरूपयोग करते हुये सबकी सत्यनिष्ठा परिभाषित करते हो। हमारे देश ने बॉसों को सत्यनिष्ठा से इम्युनिटी दे रक्खी है। चाहे कितना भी भ्रष्ट अफसर हो उसकी सत्यनिष्ठा नीचे वाले लोग तो भर नहीं सकते।इसलिये फेयरवेल ही मानक है कि आप कितने लोकप्रिय हैं। चूँकि हमारा बॉस मैनेजर से ज्यादा प्रशासक बनने  में लगा रहता है इसलिए वो ये भी सुनिश्चित करना चाहता है कि ऐसी बगावत न हो और अगर होने वाली हो तो पहले से पता चल जाए। इस विषम परिस्थिति से निपटने के लिये वो भी आखिरी दिन तक सी आर का खौफ लटका के रखता है। या ये बता के रखता है कि किसी भी पल अगले छः महीनों के लिए एक्सटेंशन लैटर आता ही होगा। डरे सहमे लोग जिन्होंने आपको कई साल झेला है कुछ और दिन झेलने को विवश हो जाते हैं। बिदाई मिलने के बाद आप धीरे से पतली गली से निकल लेते हो। 

मेरी बिदाई का समय नज़दीक आ रहा था। राज योग की शुरुआत मानो कल की ही बात हो। चार साल कैसे निकल गये पता ही नहीं चला। राज्याभिषेक एक स्वप्न की तरह लगता है। विभाग के उच्चतम पद पर मेरी नियुक्ति एक संयोग से कम नहीं थी। तब मैंने ईश्वर का शुक्रिया भी अता किया था। उस समय मै वाकई सेवा करना चाहता था। पर सिस्टम में पहले से जुटे लग्गू-भग्गू को अपनी मलाई की चिंता हो जाती है। बॉस अगर सबके साथ रहेगा तो आम और ख़ास लोगों में फर्क नहीं रह जायेगा। उन्होंने बताया कि जिनसे काम लेना है उनसे दूरी  बना के रखना ज़रूरी है। उन्होंने मुझे मेरी और मेरे पद में अवस्थित शक्तियों का भान कराया। ये चेंज  कैसे हुआ मुझे खुद पता नहीं चला। मुझमें इन लोगों ने इतनी इनसेक्यूरिटी भर दी कि मैंने लोगों पर विश्वास करना बंद कर दिया। लगता था सब नकारे और निकम्मे हैं और मुझे इनसे काम कराने के लिए भेजा गया है। सख्ती करो तो लगता लोग मुझे और मेरे पद को उचित आदर नहीं दे रहे हैं। जो एक प्रशासक का जन्मसिद्ध अधिकार है। पर एक बार इनसेक्युरिटी की फीलिंग अगर किसी में आ गयी, तो उसके आचार-विचार में कैसे परिवर्तन आ जाता है ये मै अब महसूस कर सकता हूँ। 

अपने को सिक्योर करने के लिए लग्गू ने सुझाया कि सबोर्डिनेट्स में असुरक्षा की भावना जब तक नहीं होगी तब तक आप असुरक्षित ही रहेंगे। तो मीटिंग्स में जो भी बोलने का प्रयास करे उसी पर दाना-पानी ले कर चढ़ जाओ। जब बोलने वाले चुप हो जायेंगे तो न बोलने वाले अपने आप तुम्हारे साथ हो जायेंगे। भग्गू ने बताया कि जो लिखने वाले हैं उन्हें उल्टा मेमो थमा दो। आफ्टर ऑल यू हैव टेन पेंस। लिखने वाले शरणागत हो जायेंगे। जो थोड़ी बहुत चूँ -चाँ करे उसे कमरे में बुला के हड़का दो। लग्गू ने समझाया सिर्फ और सिर्फ हम आपके प्रति वफादार हैं।  भग्गू ने बताया आप सिर्फ हमारा ख्याल रखिये और सारी व्यवस्था हमारे ऊपर छोड़ दीजिये। पूरे चार साल लग्गू-भग्गू ने मुझे कन्फ्यूज़ करके रख दिया। मै सिर्फ ये ही इंश्योर करता रहा कि कौन मेरे साथ हैं और कौन नहीं। चूँकि इस सिस्टम में टारगेट और जवाबदेही सिर्फ नीचे वालों की होती है इसलिए मुझे ज्यादा दिक्कत नहीं हुयी। पर अब रिटायरमेंट आ ही गया समझो, तो एक चिंता सता रही है कि फेयरवेल मिलेगा या नहीं। इतने दिन मैंने जबरन आदर तो बटोर लिया। पर अब यदि फेयरवेल न हुआ तो ये बात जग जाहिर हो जायेगी कि चार सालों में मेरी जनमानस में कोई पैठ न बन पायी। आजकल ये डर भी लगता है कि जिन्हें सार्वजानिक और व्यक्तिगत रूप से इन वर्षों में अपमानित करता रहा कहीं वो अपने उदगार न व्यक्त कर दें। आजकल तो लग्गू-भग्गू पर भी शक़ होता है। कमरे में कम आ रहे हैं। पर उन्हें ही बुलाना पड़ेगा और कोई तो शायद मेरे बुलाने पर भी न आये।  

लग्गू-भग्गू से अपनी चिंता जब साझा की तो उन्होंने इसका समाधान भी निकाल दिया। लग्गू ने कहा कल से ही हम आपके फेयरवेल के लिए पैसा इकठ्ठा करना शुरू कर देंगे। जो-जो बागी है उनकी लिस्ट दो दिन में आपके हाथ होगी। उनकी सी आर और इंटीग्रिटी के साथ कैसा सुलूक करना है ये निर्णय आपका। भग्गू ने कहा पहले अलग-अलग ग्रुप्स से आपकी बिदाई करवा देतें हैं। शुरुआत मेरे यहाँ से। देखिये कैसी होड़ लगती है आपको बिदाई देने की। मैंने कहा धन्यवाद, यू पीपुल आर रियली जीनियस। दोनों ने एक सुर में जवाब दिया वी आर विथ दी चेयर, सर। 

अब मै निश्चिन्त हूँ एक भाव-भीनी बिदाई पाने के लिए। 

- वाणभट्ट 

पुनश्च : हरिवंश राय 'बच्चन' जी की कालजयी रचना मधुशाला की पंक्तियाँ समर्पित कर रहा हूँ -
      
     छोटे से जीवन में कितना प्यार करूँ, पी लूँ हाला,
     आने के ही साथ जगत में कहलाया 'जाने वाला',
     स्वागत के ही साथ विदा की होती देखी तैयारी,
     बंद लगी होने खुलते ही मेरी जीवन मधुशाला।

अपने विदा की तैयारी स्वागत के साथ ही शुरू कर देनी चाहिए।

7 टिप्‍पणियां:

  1. समय - एक क्षण की यात्रा
    आने के ही साथ विदा की तैयारी और जब विदाई का वक़्त तो जाने कितनी यादें
    ये यादें ही असली विदाई की धरोहर है

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  2. वाकई विदाई के समय कुछ अजीब सा तो होता है...चाहे जैसा भी!!

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  3. " आज इस वक्त आप हैं हम हैं कल कहॉ होंगे कह नहीं सकते ।
    जिन्दगी ऐसी नदी है जिसमें देर तक साथ बह नहीं सकते ॥"
    रमानाथ अवस्थी

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  4. गुज़रे समय को कौन देखता सोचता है ... पर बिदाई का पल हमेशा रह जाता है यादों में ... जैसा भी हो ताज़ा रहता है ...
    २०१३ भी बिदा होने को है ... आपको २०१४ की बहुत बहुत शुभकामनाएं ...

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  5. उत्तम प्रस्तुति...नववर्ष की अग्रिम शुभकामनाएं।।।

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  6. जीवन में विदाई के यह सभी नमूने अंतिम विदाई की तैयारी की और ही इसरा करतें हैं । धीरे धीरे अभ्यास हो जाता है ।

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  7. विदाई के चित्रण के साथ कार्यालयों में बॉस के साथ लगे लग्गू भग्गू का सटीक चित्रण । व्यंग्य के साथ यथार्थ को कहती पोस्ट ।

    नव वर्ष की शुभकामनाएं

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यूं ही लिख रहा हूँ...आपकी प्रतिक्रियाएं मिलें तो लिखने का मकसद मिल जाये...आपके शब्द हौसला देते हैं...विचारों से अवश्य अवगत कराएं...

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