गुरुवार, 16 जनवरी 2014

मिशन जीवन - V

मिशन जीवन - V


ऑपरेशन संतति समाप्ति पर था। अमर-मानसी की संतानें जीवनयुक्त नए ग्रह अर्थेरा पर स्थापित हो चुकीं थीं। अब उनके समक्ष पृथ्वी के लिए ३५० वर्षों की लम्बी वापसी-यात्रा की चुनौती थी। अर्थेरा पर सामान्य भोजन और वायु के उपयोग के कारण उनका जीर्णन प्रारम्भ हो चला था। उन्हें यथाशीघ्र मिशन जीवन के अंतिम चरण को कार्यान्वित करना था।  अर्थेरा पर कोई भी इनकी भिन्न वेश-भूषा और पद्यतियों के बाद भी दूसरे ग्रह का वासी मानने को तैयार न था। उन्हें पिछले २५ वर्षों में निरंतर यही लगता रहा कि अमर-मानसी किसी विकसित कबीले से निष्काषित युगल हैं।

अर्थेरा आर्थिक और तकनीकी दृष्टि से पिछड़ा अवश्य था परन्तु समुदाय के रूप में एक बहुत ही संगठित समूह था। इतने वर्षों में उनका सामना किसी भी अप्रिय घटना से नहीं हुआ था। यदि राजा अपनी प्रजा के प्रति जवाबदेह हो तो प्रजा भी उसकी आज्ञा को सर-माथे लेती है। पूरा अर्थेरा समाज सभी अपनी आवश्यकताओं और उत्तरदायित्वों का वहन परस्पर मिलजुल के सौहार्द पूर्ण तरीके से करता था। पृथ्वी के सभ्य समाज में व्याप्त आतंरिक विद्वेष का लेश मात्र लक्षण भी पिछले वर्षों में देखने को नहीं मिला। इन २५ वर्षों में कबीले  ने अमर-मानसी के सहयोग से अपनी जीवन शैली में अनेक सुधार किये, परन्तु उनकी मूलभूत व्यवस्था और आंतरिक ताने-बाने में किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं आया। सहअस्तित्व सम्भवतः प्रकृति की मौलिक संरचना है। 

उचित अवसर पर एक दिन अमर-मानसी अपने यान तक गये। अंदर जा कर अपनी पृथ्वी वाली पोशाकों को पुनः धारण किया। यान को धरती पर चलाते हुए उसे अपने कबीले वाले गाँव ले आये। यान पूरे कबीले के लिए कौतुहल का विषय बन गया। दोनों ने सभी कबीले वालों के सामने अपने मिशन जीवन को विस्तार से समझाया। पृथ्वी से लाये चित्रों के द्वारा उन्होंने वहाँ की सभ्यता से सबको अवगत करने का प्रयास भी किया। दोनों ने समस्त काबिले को उनके सहयोग के लिए धन्यवाद ज्ञापित किया और साम्राज्ञी से अपनी वापसी-यात्रा के लिए अनुमति भी माँगी। उन्हें अब दोनों की दूसरे ग्रह वाली बातों में कुछ सत्यता तो दिखाई दी। परन्तु पूर्ण प्रमाणिकता तो यान के आकाश में लोप होने के बाद ही हुयी।

यान में बैठने के बाद अमर ने मानसी से कहा अर्थेरा से निकलने के लिये हमें पृथ्वी की डेढ़ गुनी ज्यादा एस्केप वेलोसिटी चाहिये। यहाँ का गुरुत्व बल पृथ्वी की तुलना में ज्यादा है। इसलिए वातावरण को न्यूनतम दूरी में पार करना होगा। उसने प्रक्षेपण के लिये यान में लगे चारों राकेट को एक साथ आरम्भ होने का निर्देश कम्प्यूटर पर दे दिया। उलटी गिनती आरम्भ हो गयी थी। सेकेण्ड अंक के शून्य होते ही कम्प्यूटर ने चारों राकेट एक साथ दाग दिये। यान धरती की लंबवत दिशा में उठ गया और कुछ ही क्षणों में अर्थेरा वासियों की चकित दृष्टि से ओझल हो गया।

अंतरिक्ष में परिक्रमा कर रहे मुख्य यान से संलग्न होना एक कठिन प्रक्रिया थी। लघु यान और मुख्य यान में माइक्रोवेव संचार के द्वारा अमर ने दोनों यानों को एक ही दिशा के लिए संचालित कर लिया। लघु यान के मुख्य यान में जुड़ने में हुयी एक भी गलती उन्हें सदैव अंतरिक्ष में ही रहने के लिए विवश कर देती। लघु यान को एक बार ही प्रयोग में लाने के लिए बनाया गया था। इसलिए वापस अर्थेरा ले वातावरण में प्रवेश करते ही वो छिन्न-भिन्न हो जाता। लघु यान को इस प्रकार जोड़ना था कि मुख्य यान पर किसी भी प्रकार का बल न लगे अन्यथा मुख्य यान अंतरिक्ष की असीम गहराइयों में डूब सकता था। मानसी ने इस पूरी प्रक्रिया को सहजता से पूर्ण किया। इस कार्य के लिए नियत १० सेकेण्ड में पूरी क्रिया को संपन्न करना था। अमर ने मानसी को कुशल संचालन के लिए बधाई दी। 

मुख्य यान पर आने के बाद अमर ने यान के ऑटो ट्रैकिंग उपकरण को सक्रिय कर दिया। इस उपकरण में यान के पथ से समस्त आँकड़े उपलब्ध थे। अब यान को स्वचालित प्रणाली में वापस पृथ्वी की कक्षा में स्थित चंद्रमा तक जाना था, जहाँ से इस यान की यात्रा प्रारम्भ हुयी थी। यात्रा लम्बी अवश्य थी पर उबाऊ बिलकुल नहीं। ग्रह-नक्षत्रों को इंफ्रा रेड टेलीस्कोप की सहायता से इतने निकट से देखना एक अलग ही अनुभव था। पुनः अमर और मानसी ने अपनी दिनचर्या को इस प्रकार व्यवस्थित किया कि दोनों में से एक पूर्ण रूप से चैतन्य रहे। श्वांस नियंत्रण और ध्यान का उनका पुराना खेल पुनः आरम्भ हो गया। तीन शताब्दी से अधिक अवधि की यह यात्रा उनके जीवन की अंतिम यात्रा हो सकती थी। अतः वे उसका सम्पूर्ण आनंद लेना चाहते थे।

लगभग ३०० वर्ष बीत चुके थे जब उन्होंने सौर्य मंडल में प्रवेश किया। इन छः-साढ़े छः सौ वर्षों में सूर्य मंडल कुछ बदल सा गया था। शनि के वलय समाप्त हो चुके थे। बृहस्पति के आकार में भी कमी आ गयी थी। मंगल की लालिमा में कुछ हरा-नीला रंग भी सम्मिलित था। मंगल और बृहस्पति के बीच एक पृथ्वी जैसे एक नए ग्रह का प्रादुर्भाव हो रहा था। पृथ्वी के चारों ओर दो-दो चन्द्र परिक्रमा कर रहे थे। ये सब उनके किये एक सुखद स्वप्न जैसा था। छः सौ साल पहले कोई ये कल्पना भी नहीं कर सकता था कि सौर्य मंडल में इस प्रकार परिवर्तन भी हो सकता है। दोनों को हर्ष था कि  वे इस घटना के साक्षी बने। उनकी यात्रा का अंत निकट आ रहा था। मात्र ४५-५० वर्ष और। 

अमर-मानसी ने यान की स्वचालित प्रणाली को बंद कर यान का नियंत्रण अपने हाथ में ले लिया। सबसे पहले उन्होंने चन्द्र अंतरिक्ष केंद्र से सम्बन्ध स्थापित करने का प्रयास किया। उधर से कुछ अस्फुट से सन्देश आ रहे थे। सन्देश कि भाषा भी उनकी समझ में नहीं आ रही थी। उन्हें लगा कि कहीं भारतीय अंतरिक्ष केन्द्र पर किसी अन्य देश ने अधिपत्य तो नहीं जमा लिया। दो चंद्रमाओं ने उनकी निर्णय लेने की क्षमता को भी प्रभावित कर दिया था। अमर ने मानसी से कहा धरती वालों ने लगता है चाँद के टुकड़े कर डाले। मानव के विकास और विनाश में अधिक अंतर नहीं है। अर्थेरा के लोग एक सम्पूर्ण जीवन जी रहे हैं। जबकि धरती पर इंसान तकनीक और क्षमताओं का उपयोग प्रकृति पर शासन करने के लिए कर रहा है। भारत का अंतरिक्ष केंद्र किस चाँद पर है, यह खोज पाना असम्भव सा लग रहा है। हम सीधे पृथ्वी पर प्रवेश करें। ये ही श्रेयस्कर प्रतीत होता है, मानसी ने अपनी सहज प्रतिक्रिया दे दी थी। 

अमर ने यान की दिशा पृथ्वी की ओर मोड़ दी। वातावरण के घर्षण से उत्पन्न यान के वाह्य तापमान को अनुज्ञेय सीमा से अंदर रखने हेतु अमर ने संक्षिप्त मार्ग का अनुसरण करते हुये वातावरण में प्रवेश लिया। अर्थेरा पर उतरने की पुनरावृत्ति करते हुये शीघ्र सम्पूर्ण यान पृथ्वी की विशाल जल राशि में समा गया। कुछ क्षणों के बाद यान समुद्र की सतह पर तैर रहा था। अपनी इस यात्रा को समाप्त करके अमर-मानसी के आनंद का ठिकाना नहीं रहा। वो हर्षातिरेक में चीख पड़े। यह यात्रा और उनका जीवन एक स्वप्न से कम नहीं था।सामान्य होने के बाद दोनों ने एक साथ  यान के प्रकोष्ठ से बाहर कदम रखा ही था कि उन्होंने यान को चारों तरफ से अन्य स्टीमरों से घिरा पाया। स्टीमरों पर सवार सभी की स्वचालित बंदूकों का लक्ष्य अमर-मानसी ही थे। उस समूह के मुखिया ने कुछ कहा। उसकी भाषा दोनों की समझ से परे थी। ये वही अस्फुट सी भाषा थी जिसे उन्होने चन्द्र अंतरिक्ष केन्द्र से संपर्क साधते हुए सुनी थी। दोनों ने क्षीण सी मुस्कान के साथ अपने दोनों हाथ ऊपर उठा दिये। 

चारों ओर से घेर कर उन्हें उनके यान के साथ निकटस्थ तट तक लाया गया। वहाँ पर यान को उस समूह ने अधिकृत कर लिया। अमर-मानसी को बंधक बना कर मुखिया सिपाहियों की एक टुकड़ी के साथ एक गाड़ी में शहर की ओर चल दिया। उन्नति के सन्दर्भ में ये देश ७०० साल पहले छोड़े भारत से आगे लग रहा था। लगभग उस समय के अमेरिका जैसा। शीघ्र ही वे लोग एक विशाल भवन के सामने थे। उस भवन पर अंकित संकेत चिन्हों से अमर-मानसी ने अनुमान लगा लिया कि यह इस देश की अंतरिक्ष संस्था है। इसी ने अमर के माइक्रोवेव तरंग सन्देश का अंतरावरोधन किया होगा और तब से ही ये लोग यान के पृथ्वी पर प्रवेश की प्रतीक्षा कर रहे होंगे। अमर-मानसी संतुष्ट थे कि वे वापस अपनी धरती पर आ गए हैं। दोनों ने किसी प्रकार का विरोध करना उचित नहीं समझा। उन्हें आशा थी कि शीघ्र ही वे अपनी बात इन लोगों को समझा सकेंगे। 

एक प्रतीक्षा कक्ष में दोनों को बैठा दिया गया। सिपाहियों का मुखिया भी उनके साथ बैठ गया। उसने अपनी भाषा में कुछ बात करने का प्रयास किया। थोड़ी ही देर में वे संकेतों की भाषा में कामचलाऊ बात कर रहे थे। शीघ्र उनकी प्रतीक्षा समाप्त हुयी। भीतर एक सभा कक्ष में कई लोग उपस्थित थे। सभा में उपस्थित लोगों ने अमर-मानसी से कई सवाल पूछे परन्तु वे विचारों का आदान-प्रदान कर सकने की स्थिति में नहीं थे। सभा की अध्यक्षता कर रहे व्यक्ति ने अमर-मानसी को एक विशेष कुर्सी पर बैठने का आदेश दिया। उनके पूरे शरीर को कुर्सी पर पट्टों की  सहायता से बांधने के पश्चात् उनके सर पर एक टोपी जैसा यंत्र लगा दिया गया। उन्हें आशा थी कि अब शायद बिजली के झटके दिए जाएँ परन्तु ऐसा कुछ नहीं हुआ। अध्यक्ष ने संकेत से अमर को अपनी बात कहने के लिए कहा। कुछ ही देर में अमर जो-जो सोच कर बोल रहे थे वो चलचित्र की भाँति सामने परदे पर दिखाई देने लगा। सभा में उपस्थित लोग कभी कौतुहल तो कभी असमंजस में वो दृश्य चित्र देख रहे थे। अमर ने अपनी पूरी यात्रा को अक्षरशः चित्रपट पर प्रदर्शित होते देखा। सभी पूरी तरह शान्त बैठे थे। पूरा वृतान्त समाप्त होते ही सभागार करतल ध्वनि से गूंज गया। सब लोग अपने स्थान पर खड़े हो गए थे।

मानसी सभाकक्ष के कोने में रखे ग्लोब को एकटक देख रही थी। उस पर अंकित महाद्वीप पृथ्वी के महाद्वीपों से अलग जान पड़ रहे थे।

(समाप्त)

- वाणभट्ट            
                      

सोमवार, 13 जनवरी 2014

मिशन जीवन - IV

मिशन जीवन - IV

इस घटना से इतना तो तय हो गया कि जितना पिछड़ा अमर अर्थेरा वासियों को मान रहा था वो उससे आगे थे। उन्हें अयस्क से इस्पात बनाने की विधि का ज्ञान था। तलवार की तीव्र चुभन दोनों के शरीर पर बढती ही जा रही थी। अमर का हाथ त्वरित प्रतिक्रिया में अपने स्वचालित रिवॉल्वर की ओर बढ़ा ही था कि मानसी ने उसे ऐसा करने से मना कर दिया। उसने लगभग चिल्ला के कहा हम यहाँ लड़ने नहीं आये हैं। प्रतिउत्तर में अमर ने कहा कि हम मरने भी तो नहीं आये हैं, प्रिये। देखो ये क्या करते हैं मानसी ने कहा। तलवार के कुछ नियंत्रित प्रहारों से अमर-मानसी के वस्त्र भूमि पर आ गिरे। ये सौभाग्य ही था कि उनके हथियार वस्त्रों के भीतर ही छिपे रह गये। दोनों के नग्न शरीर को देख कर उपस्थित जन समुदाय में हर्ष की लहर दौड़ गयी। दूसरों का नग्न शरीर धरती पर भी हास्य का विषय हो जाता है जब अन्य सभी के शरीर वस्त्रों से ढंकें हों। बच्चों के ठहाकों ने उस स्तब्ध सभा में गुंजायमान हो गए। अब अमर-मानसी ने गौर किया कि वहाँ उपस्थित सभी बच्चों की आयु १० वर्ष या उससे अधिक थी। एक वर्ष से छोटे बच्चे अपनी माँओं के गोद की शोभा बढ़ा रहे थे। दोनों ने ग्रह वासियों की नितांत मानवीय भावना को सहज स्वीकार किया। संदिग्ध व्यक्ति का स्वागत नये देश में कुछ इसी प्रकार होता आया है। इस परिस्थिति में ये अनिवार्य भी था। भवन के अंदर गयी स्त्री उनके लिये अर्थेरा वासियों जैसे वस्त्र ले कर मंच पर आ चुकी थी। उन वस्त्रों को धारण करने के बाद अमर-मानसी को आम अर्थेरा वासियों से अलग पहचान पाना कठिन था। कबीले की साम्राज्ञी ने सिपहसालार जैसे व्यक्ति को कुछ और निर्देश दिये। और सभा विसर्जित हो गयी।

सिपहसालार अमर-मानसी को मुख्य भवन के समीपस्थ एक गृह में ले गया। अपनी भाषा में उसने कुछ कहा। अमर-मानसी को लगा कि ये उनके रहने की व्यवस्था है। अमर अपने और मानसी के फटे वस्त्रों को समेट लाया था। उसे डर था कि उनके स्वचलित हथियार किसी और के हाथ न पड़ जाएँ। इस समय उनके पास पृथ्वी के सिर्फ दो चिन्ह ही रह गये थे, फटे वस्त्र और लघु हथियार। वो गृह नहीं था। घर के नाम पर मिट्टी की चार दीवारें थीं और ऊपर था फूस का छाजन। गृह के अंदर सोने के लिये उच्च स्थान पर फसलों के पुआल से यथासम्भव नर्म शैय्या बनायी गयी थी। पेड़ के तनों को काट कर बैठने की व्यवस्था थी। एक द्वार प्रवेश के लिये अग्र भाग में था। दूसरा पीछे की तरफ खुलता था जहाँ शौच और स्नानागार नियत स्थान पर प्रतिष्ठित थे। आवरण विहीन द्वारों से आता प्रकीर्णन-प्रकाश गृह के कोने-कोने को आलोकित कर रहा था। अमर ने शाम को उस गृह से बाहर निकलने का प्रयास किया तो दोनों द्वार पर दो-दो सशस्त्र व्यक्तियों ने उन्हें बाहर निकलने से रोक दिया। यानि उनकी उपस्थिति के प्रति अर्थेरा वासी अभी भी संदिग्ध थे। उनका विश्वास प्राप्त करने के लिये उन्हें यान तक जाना आवश्यक था। जहाँ से वो उनके लिये पृथ्वी से लाये उपहार ला सकें। उन्हें रात्रि की प्रतीक्षा करनी होगी। यहाँ रात भी बीस घंटे की होती थी। मानवीय स्वभाव के अनुसार रात्रि में सामान्य व्यक्ति के लिये अपनी चैतन्यता को बनाये रखना दुष्कर हो जाता है।

मुख्य ग्रह जिबेका से परावर्तित प्रकाश के कारण अर्थेरा पर रात्रि में भी अप्राकृतिक प्रकाश की आवश्यकता नहीं थी। लगभग तीन महीने से अधिक समय अर्थेरा पर व्यतीत कर लेने के पश्चात् अमर-मानसी की जैविक घड़ी ग्रह के अनुकूल हो चली थी। पूरा दिन दोनों ने भरपूर नींद का आनन्द  लिया। रात्रि होने के बाद चौथे प्रहर तक का समय दोनों ने बिना नींद के व्यतीत किया। उस समय तक सभी प्रहरी गहन निद्रा में डूब चुके थे। आदिवासी वस्त्रों में उन्हें चलने में कठिनाई का अनुभव हो रहा था। संयोग से उनके जूतों पर किसी का ध्यान नहीं गया था अन्यथा जंगल में नए मार्ग पर चलना और भी दुरूह हो जाता। आत्मसुरक्षा की दृष्टि से अमर ने अपना स्वचालित हथियार साथ ले लिया था। वे यथाशीघ्र यान से उपहार ले कर दिन निकलने से पूर्व बंदी गृह लौट आना चाहते थे। वे यान के निकट पहुंचने ही वाले थे कि एक तीर सरसराता हुआ मानसी के सर के पास से निकल गया। त्वरित प्रतिक्रिया में अमर ने रिवाल्वर से मनुष्य की सामान्य ऊंचाई से ऊपर एक गोली दाग दी। जंगल का निस्तब्ध वातावरण गोली की ध्वनि से गूँज गया। जिस व्यक्ति ने तीर चलाया था धराशायी हो गया। मानसी ने अमर को डाँटा तुम्हें ये हथियार ले कर नहीं आना चाहिए था। दोनों दौड़ते हुए उस व्यक्ति के पास पहुंचे। वो कोई और नहीं सिपहसालार था। धमाके की आवाज़ सुन कर वो दहशत से गिर गया था अन्यथा उसे कुछ भी नहीं हुआ था। अमर ने मुस्करा कर मानसी की ओर देखा। अपनी रिवॉल्वर मानसी को देते हुए उसने कहा तुम इन भाईसाहब को सम्हालो मै इनके लिए मित्रता की कुछ भेंट ले कर आता हूँ। देखना किसी भी परिस्थिति में इन्हें यान का पता नहीं लगना चाहिये।

कुछ समय बाद अमर दो बड़े-बड़े थैलों में कुछ सामान ले कर आ गया। सिपहसालार अभी तक भय से उबर  नहीं पाया था। अमर ने उसे पृथ्वी से लायी एक चॉकलेट दी। वो उसे कुछ देर तक उलटता-पलटता रहा। मानसी ने उसकी सहायता के लिए चॉकलेट का बाहरी आवरण उतार दिया। अमर ने उसे खाने का संकेत दिया। सिपहसालार ने क्षणिक दुविधा के साथ इस नये पदार्थ को सूंघा फिर अपनी जिव्हा से चखा। तुरंत ही उसके मुख पर आनंद के भाव आ गये। अमर ने उसे गले से लगा लिया। ये उनकी मैत्री का आरम्भ था। अमर-मानसी को हर्ष था कि जिस प्रथम अर्थेरावासी ने उन पर विश्वास किया वो उस कबीले का मुख्य सिपहसालार था। उन्हें आशा थी कि अब उनके लिए अर्थेरावासियों का ह्रदय परिवर्तन करना कतिपय सहज होगा। 

गाँव तक पहुंचते-पहुंचते दिन निकल आया था। मंच पर साम्राज्ञी अपने पूरे मंत्रिमंडल के साथ विराजमान थीं। गाँव के सभी लोग मंच के नीचे बैठे हुए थे जब इन लोगों ने सभा में प्रवेश किया। अमर-मानसी के भाग जाने का समाचार फ़ैल चुका था। सिपहसालार ने अपनी भाषा में पूरा वृतांत कह सुनाया। मंचासीन सभी के चेहरे पर एक हल्की मुस्कान दौड़ गयी थी। अमर-मानसी ने सभी का हाथ हिला कर अभिवादन किया। अपने थैलों से सभी को कुछ न कुछ उपहार दिया। सुंदर आवरण में बंधे उपहारों और चॉकलेटों ने समस्त अर्थेरावासियों को आनंदित कर दिया। सभा के विसर्जित होने तक अमर-मानसी को ये विश्वास हो चला था कि वे अर्थेरावासियों के हृदय परिवर्तन के अपने अभियान में सफल हो गए थे।

इसका प्रमाण भी उन्हें शीघ्र मिल गया। उनके द्वारों पर यवनिका लगा दी गयी थी और प्रहरियों को भी हटा लिया गया। अब वे एक आम अर्थेरा वासी की तरह जीवन जीने को स्वतन्त्र थे। वहाँ की भाषा सीखना अब उनका मुख्य लक्ष्य था। कुछ महीनों के मेलजोल में ही वे लोग कबीलों की स्थानीय भाषा में दक्ष हो गए। इन कबीलों का जीवन पृथ्वी के किसी सामान्य आदिवासी जीवन से अलग नहीं था अपितु वे कुछ विषयों में पृथ्वी के आदिवासियों से अधिक समृद्ध और संस्कारवान थे। वहाँ स्त्रियों और पुरुषों को सामान रूप से देखा जाता था। प्रत्येक कार्य क्षेत्र में स्त्री-पुरुष को सामान प्रशिक्षण दिया जाता था। स्त्रियां शिकार और खेती में उसी प्रकार प्रवीण थे जैसे पुरुष गृहकार्यों में। सभी काम मिल-जुल कर किया जाता। हर्ष-उल्लास के आयोजनों में भी दोनों की भागीदारी होती। ये भी पता चला कि अर्थेरा पर अन्य कबीले भी हैं। आपस में संघर्ष न हो इसलिये ये आपस में एक निश्चित दूरी नियत रखते हैं। इस लक्ष्मण रेखा का सभी कबीले सम्पूर्ण पालन करते थे। ग्रह पर जगह की कमी नहीं थी इसलिए आपसी सामंजस्य को बनाये रखने के लिये एक कबीला किसी दूसरे के क्षेत्र में प्रवेश नहीं करता था। सभी कबीलों पर महिलाओं का शासन था। अमर ने अनुभव किया कि महिला प्रशासक अपनी प्रजा के लिये अधिक संवेदनशील होती है। सम्भवतः अर्थेरा पर जीवन इसीलिए बहुत सौहार्दपूर्ण था। 

एक से दस वर्ष आयु तक के बच्चों की देखरेख कुछ महिलाये एक पृथक स्थान पर करतीं। दस वर्ष की आयु पूरी कर लेने के बाद बच्चे बड़े लोगों के साथ काम करके जीवन के लिए आवश्यक गतिविधियों में निपुणता पाते। वयस्क अवस्था तक आते-आते सभी स्त्री-पुरुष भवन निर्माण, पत्र -वस्त्र बनाने, अन्न उत्पादन, शिकार, आत्म रक्षा, हथियार और औजार बनाने की कला में पारंगत हो जाते। यहाँ एक मुख्य बात थी कि बच्चों में किसी भी प्रकार का भेद-भाव नहीं था।बच्चे कबीले के होते थे और उनका लालन-पालन का उत्तरदायित्व भी कबीले का होता। उनका विवाह अपनी पसंद से होता केवल सम्पूर्ण सभा में स्त्री-पुरुष को एक बार एक-दूसरे का सानिध्य स्वीकार करना होता। इसके बाद पूरा कबीला उन्हें घर बनाने में सहायता करता। द्वार पर लगी यवनिका उस गृह में विवाहित युगल के होने का द्योतक था। अतिशय वृद्ध लोगों के लिए भी पृथक व्यवस्था थी। रोगियों के लिये रुग्णालय था। बाल आश्रम, वृद्धाश्रम और रुग्णालय सभी का कार्यभार पूरा कबीला वहाँ करता।   

अमर-मानसी ने कबीलों के इस समूह की भाषा को लिपिबद्ध करना सिखाया। उन्हें अंक ज्ञान, कैलेण्डर और गणनाओं को अवधारणा से परिचित कराया। पृथ्वी पर प्राप्त किये अपने ज्ञान को उन्होंने कबीलाई भाषा में समझाया और लिपिबद्ध किया। इस समूह के साथ वो अपना सम्पूर्ण ज्ञान साझा कर लेना चाहते थे। कपास के बीज, जो वे पृथ्वी से लाये थे, से कपास की खेती और उसके रेशों से कपडे बनाना सिखाया।लकड़ी की लुगदी से कागज़ का उत्पादन कि विधि भी सिखायी। अगले अर्थेरा के चार वर्षों में मानसी ने दो स्वस्थ पुत्रियों को जन्म दिया। जिन्हें एक वर्ष की अवधि के पश्चात् बाल गृह में भेज दिया गया। बीस वर्ष की आयु होने पर के होने पर दोनों उसी काबिले में अपना विवाह करके जीवन व्यतीत करने लगीं। प्रायः अमर-मानसी बातें करते कि अर्थेरा के अन्य किसी भाग पर विकसित जीवन भी हो सकता है। उन्होंने अर्थेरा का मात्र एक जीवन देखा था। यदि कोई पृथ्वी के आदिवासी क्षेत्र में पहुँच जाये तो बहुत सम्भव है वो पूरी पृथ्वी को उतना ही पिछड़ा मानने की भूल कर बैठे। कभी-कभी अमर उस जहाज का उल्लेख भी करता जिसे उसने अर्थेरा पर उतरने के बाद दूरबीन से देखा था। अर्थेरा की धरती पर कदम रखे हुये अमर-मानसी को २५ वर्ष हो चुके थे। उनके जीर्णन की गति ऑक्सीजन के आधिक्य से प्रभावित होने लगी थी। अभी उन्हें अभियान का अंतिम चरण पूरा करना बाकी था। 


(क्रमशः )

- वाणभट्ट 

बुधवार, 8 जनवरी 2014

मिशन जीवन - III

मिशन जीवन - III

अर्थेरा पर उतरने से पूर्व अमर-मानसी ने ग्रह की एक पूरी परिक्रमा कर लेना उचित समझा। इस परिक्रमा के दौरान यान में लगे संवेदी उपकरणों ने दर्शा दिया कि पानी की वाष्प और ऑक्सीजन वातावरण में  प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है। संवेदनशील कैमरों ने ग्रह के तीन -चौथाई हिस्से पर पानी जैसे पदार्थ की पुष्टि भी कर दी। इस ग्रह पर भी भूमि महाद्वीपों और द्वीपों के रूप में अवस्थित थी। ऊँचे हिम आच्छादित पर्वत थे, घने जंगल थे, झील और नदियां भी। जीवन की सारी सम्भावनाओं से भरा हुआ था अर्थेरा। धीरे-धीरे यान ने ग्रह के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र में प्रवेश किया। गणनाओं के आधार पर तय हो गया कि ग्रह का गुरुत्वाकर्षण पृथ्वी की तुलना में दोगुना ज्यादा था। इस कारण यान की गति अपेक्षा से अधिक रूप से बढ़ती जा रही थी। सिर्फ अर्थेरा का वातावरण ही यान की गति के विरुद्ध कार्य कर रहा था। वातावरण के प्रतिरोध के कारण यान का वाह्य तापमान बढ़ता जा रहा था। वाह्य तापमान १६५० डिग्री सेल्सियस तक पहुँच गया। वाह्य तापमान का प्रभाव दोनों यान के भीतर भी महसूस कर सकते थे। यान की ताप अवरोधी सतह को १८०० डिग्री के लिए डिज़ाइन किया गया था। उन्हें डर था कि इस सीमा के बाद यान एक अग्नि के गोले में ना परिवर्तित हो जाये। इसलिए तापमान की उच्चतम सीमा तक पहुंचने से पहले उनके लिए यान को अर्थेरा पर सकुशल उतारना आवश्यक था। अंतः न्यूनतम दूरी वाले मार्ग का चयन किया गया। मानसी ने यान को उस दिशा में मोड़ दिया जिधर यान का अल्ट्रासोनिक उपकरण जल की अधिकतम गहराई प्रदर्शित कर रहा था। यान अब पूरी तरह गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव में था। उसकी गति को किसी भी तरह नियंत्रित कर पाना अब उनके हाथ में नहीं था। एक दहकते हुये उल्का पिंड की तरह लघु यान अर्थेरा के समुद्र की अथाह गहराइयों में समा गया। लघु यान का निर्माण ऐसे कम्पोज़िट मैटेरियल से किया गया था, जिसका घनत्व जल से कम था। इसलिये यान के जल में डूबने की सम्भावना नहीं थी। बस भय था उच्च तापमान पर इस पदार्थ का पानी से किसी भी प्रकार संपर्क यान को पिघला देता। तापमान वृद्धि से यान की बाहरी परत में दरार पड़ने की सम्भावना थी। डर जल के नीचे स्थित किसी अदृश्य चट्टान का भी था। संयोग से यान की बाहरी सतह पर कोई दरार नहीं आयी, ना ही जल प्रवेश में कोई अवरोध। 

कुछ ही समय में यान जल की सतह पर आ गया। अब वह यान एक जलपोत के रूप में कार्य कर रहा था। बाहर का तापमान २५ डिग्री सेल्सियस था। अमर और मानसी शीघ्रातिशीघ्र अर्थेरा के वातावरण में साँस लेने को लालायित थे। पोत के कक्ष से बाहर निकल कर उन्होंने धीरे से नए वातावरण में पहली साँस ली। उनके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा जब एकदम शुद्ध ऑक्सीजन ने उनके शरीर में प्रवेश किया। हर्षातिरेक में अमर ने मानसी को आलिंगनबद्ध कर लिया। पृथ्वी और अर्थेरा के वातावरण में कोई विशेष अंतर भी महसूस नहीं हो रहा था। सिवाय इसके कि यहाँ आकाश के हरा होने का आभास होता था। वातावरण में उपस्थित वायु कण प्रकाश अपवर्तन और प्रकीर्णन का निर्धारण करते हैं।  आकाश के प्रतिबिम्ब के कारण समुद्र का जल भी हरा दिखाई देता था। समुद्र के जल में हरित शैवालों की उपस्थिति इस विशाल जल राशि को गहन हरीतिमा प्रदान कर रही थी। पोत को समीपस्थ भूमि की दिशा में मोड़ दिया गया। मिशन का मुख्य कार्य जीवन की खोज संपन्न हो गया था। अमर-मानसी ने ऐसे ग्रह पर पदार्पण कर दिया था जिस पर जीवन की सारी सम्भावनायें विद्यमान थीं। मन ही मन दोनों ने डॉ संदीपन को नमन किया। उनकी प्रेरणा और इस मिशन के प्रति उनका विश्वास आज पृथ्वी के ३०० वर्षों बाद फलीभूत हुआ। उन्हें इस बात के लिए गर्व की अनुभूति भी हुयी कि यह महती कार्य उनके द्वारा संपन्न हुआ।

अर्थेरा के तीन माह की अनवरत जल यात्रा के पश्चात दोनों ने स्वयं को अर्थेरा की धरती पर पाया। इस यात्रा में उन्होंने स्वग्रहित सभी प्रतिबंधों से स्वयं को मुक्त कर लिया। साँसों का नियंत्रण अब तक उनकी मूल प्रवृत्तियों में रच-बस गया था। नव ग्रह पर संसर्ग-सुख उनकी इस चरम तपस्या की अंतिम परिणति नहीं था। उन्हें इस ग्रह पर ऑपरेशन संतति पर भी कार्य करना था। लक्ष्य के अनुसार उन्हें अगले २०-२५ वर्षों में प्रजनन और संतति को स्थापित करके वापस पृथ्वी की ओर लौटना था। अन्यथा इस खोज का पृथ्वी वासियों के लिए कोई महत्त्व न होता। ये एक एकल मार्ग यात्रा मात्र रह जाती।  छः - सात सौ वर्षों की अवधि में २०-२५ वर्ष का महत्त्व कुछ घंटों से अधिक नहीं था। इस युगल के पास व्यर्थ करने के लिए समय नहीं था।

लघु यान या पोत  ही अमर-मानसी का स्थायी घर बन गया था। मौका मिलते ही ये यान सहित अगले ठिकानों पर बढ़ते जाते। अर्थेरा की धरती पर जीवन के सभी लक्षण विद्यमान थे। समुद्री जीव-जंतु के दर्शन तो पहले ही हो चुके थे। भूमि पर पशु-पक्षी भी बहुतायत में थे। किसी भी अद्भुत या विचित्र प्राणी से इनका सामना अब तक नहीं हो पाया था। अंतिम आशा मानव पर ही टिकी हुयी थी। पृथ्वी पर अधिकांश सभ्यताओं का विकास नदियों के तट पर ही हुआ था। इस परिकल्पना के आधार पर उन्होंने नदियों की तलाश आरम्भ कर दी। यहाँ २० घंटों का दिन उन्हें अपने खोज अभियान में भरपूर सहयोग देता महसूस होता था। एक दिन उन्हें समुद्र की क्षितिज पर कुछ गतिविधि दिखायी दी। दूरबीन से उन्हें एक जहाज़ जैसी आकृति का आभास हुआ। अथक प्रयास के बाद वे एक नदी के मुहाने पर थे। यहाँ से उन्होंने धारा के विपरीत दिशा अपना ली। वे दिन प्रति दिन मुख्य भूमि  भीतर चलते चले जा रहे थे। उन्हें मानव जीवन की पुष्टि के संकेत भी मिलने लगे। कभी एकांत जंगल में पर पताकाओं का होना। कभी नदी के जल में अप्राकृतिक वस्तुओं की उपस्थिति उनकी अवधारणा को बल देती थी। एक टूटी नौका का कुछ हिस्सा उनके यान के निकट से बह निकला था। उन्हें ये विश्वास भी हो रहा था कि यदि इस ग्रह पर मानव है तो मानवीय भावनायें भी होंगी। कहीं किसी ने अनायास हमें अपना शत्रु समझ लिया तो अकारण युद्ध की स्थिति बन जायेगी। ये तो तय था कि इस ग्रह की सभ्यता पृथ्वी जैसी विकसित नहीं जान पड़ रही थी। अमर-मानसी के स्वचालित हथियारों का सामना करना इस ग्रह के वासियों के लिए सम्भव न होता।

एक स्थान पर पहुँच कर दोनों ने पैदल यात्रा करना उचित समझा। यान को नदी के किनारे उच्च स्थान पर छिपा कर रख दिया। वे संभल-संभल नदी के किनारे-किनारे आगे बढ़ रहे थे। हर आहट के प्रति सजग और चौकन्ने। मानव की उपस्थिति के संकेत बढ़ते ही जा रहे थे। फलों के बाग और खेतों को देख कर कहना कठिन हो रहा था कि वे किसी अन्य ग्रह पर हैं सिर्फ आकाश और जल की हरीतिमा उन्हें याद दिलाती थी कि वे पृथ्वी पर नहीं हैं। शीघ्र ही उन्हें एक मंदिर जैसे भवन के दर्शन हुए। ये भवन ज्यादा बड़ा तो नहीं था परन्तु उस पर विद्यमान पताकाओं ने उसे एक पूजनीय स्थल का रूप दे रक्खा था। दोनों ने अपनी हिन्दू प्रवृत्ति के अनुसार चरण पादुकाएं उतार कर मंदिर में प्रवेश किया। अंदर एक मूर्ति स्थापित थी। उसके निकट पूजन सामग्री रक्खी थी। एक फूस की चटाई मूर्ति के सामने बिछी हुई थी। मंदिर की साफ़-सफाई वहाँ लोगों के नियमित आने की पुष्टि कर रही थी। दोनों ने श्रद्धा भाव से हाथ जोड़ कर अर्थेरा के प्रथम देव का आराधन किया। फिर दोनों अपनी प्रवृत्ति के अनुसार ही दरी पर ध्यानावस्थित हो कर बैठ गए। श्वांस-प्रश्वांस का उनका मानसिक खेल प्रारंभ हो चुका था।

कितनी देर वे इस अवस्था में रहे ये भान उन्हें नहीं रहा। सहसा अमर ने अपने मस्तक पर मानसी के स्पर्श का अनुभव किया। उसने धीरे से अपनी आँखें खोल कर मानसी की ओर देखा। मानसी ने उसे चारों ओर देखने का संकेत किया। कई लोगों ने उनको घेर रक्खा था। उसने द्वार की दिशा में दृष्टि डाली। द्वार के बाहर भी उसे लोगों की गतिविधि का अनुभव हुआ। वहाँ से निकल भागने का कोई अवसर नहीं था। और वे लोग मानव खोज के लिए आये थे इसलिए उनको भागने की आवश्यकता भी नहीं थी। दोनों ने सहज रूप से हाथ ऊपर उठा दिये। किसी भी प्रकार कि हड़बड़ी नये लोगों में अविश्वास उत्पन्न कर सकती थी। उनमें से एक व्यक्ति ने इन्हें बाहर निकलने का संकेत किया। दोनों ने बाहर निकल कर अपनी पादुकाओं को पहन लिया। उन्हें इन व्यक्तियों और स्वयं में कोई विशेष अंतर नहीं दिख रहा था सिवाय इसके कि इनकी सभ्यता पृथ्वी से हज़ारों वर्ष पुरानी लग रही थी। एक जो सबसे बड़ा अंतर था वो थी उनकी वेशभूषा। इनके कपड़े पृथ्वी के सामान्य कपडे थे, पैंट-शर्ट परन्तु अर्थेरा वासियों ने भिन्न प्रकार के पत्र-वस्त्रों से अपने शरीर को ढँक रखा था। एक व्यक्ति आगे चल रहा था और १५ -२० लोग इनके पीछे।

जैसे ही इस दल ने आवासीय क्षेत्र में प्रवेश किया, अन्य सामान्य जन भी इस दल में शामिल होते गए। स्त्रियां, पुरुष और बच्चे कच्चे मार्ग के किनारे खड़े इन्हें कौतूहल से देख रहे थे। मार्ग के दोनों ओर कतारबद्ध तरीके से घरों का निर्माण किया गया था। प्रत्येक घर के बीच एक निश्चित दूरी थी। मकान कच्चे थे और मिटटी के बने हुए थे। छत के लिए घास-फूस का प्रयोग किया गया था। सभी घर एक ही प्रकार के थे। घरों के द्वार पर जूट के परदे लगे हुए थे। घरों के पिछले हिस्से में स्नानागार तथा शौचालय की व्यवस्था दिखाई दे रही थी। उनके भी पीछे खेती के संकेत भी मिल रहे थे। इतने साधारण रहन-सहन में भी एक असाधारण बात थी, वहाँ की साफ़ सफाई। सभी घर असामान्य रूप से स्वच्छ लग रहे थे। पत्र-वस्त्र भी मानो नए हों। मार्ग के अंत में एक वृहद् आकार का भवन था। ये भी मिटटी से ही निर्मित था परन्तु इसकी ऊंचाई और आकार इसे अन्य भवनों से विशिष्ट बनता था। भवन का मुख्य द्वार ५ फिट की ऊंचाई पर था। मुख्य द्वार के सामने एक सिंघासन नुमा तख़्त पड़ा था। उसके बगल में तीन छोटे सिंघासन दाईं और बायीं ओर लगे हुये थे। अमर-मानसी को लगा कि ये यहाँ के राजा का घर हो सकता है।  

सबसे आगे चल रहे व्यक्ति ने सिंघासन के बगल में रखे एक ढोल नुमा यंत्र से कुछ सन्देश भेजा। थोड़ी ही देर में लगता है सारे गाँव के निवासी उस स्थान पर एकत्र हो गए। कुल जमा संख्या सभी पुरुषों, महिलाओं बच्चों को मिला कर १०० -१५० की रही होगी। सभी आयु वर्ग के लोग इस समूह में उपस्थित थे। अमर-मानसी इस बात से प्रसन्न थे कि उन्होंने एक अन्य जीवित ग्रह की खोज कर ली है। इंसान एक सामाजिक प्राणी है तो अन्य ग्रह पर भी उनके कुछ चाल-चलन होंगे, कुछ मान्यताएं और रिवाज़ भी होंगे। उन्हें ख़ुशी इस बात की भी थी उनका सामना किसी अजीबोगरीब एक्स्ट्रा टेरेस्ट्रियल प्राणी, जैसे हॉलीवुड फिल्मों में दिखाये गए थे, से नहीं हुआ था। किसी विदेशी को देख कर जैसा धरती के लोग व्यवहार करते उससे भिन्न नहीं था इस अर्थेरावासियों का व्यवहार। उसी व्यक्ति ने पुनः ढोल पर भिन्न तरह की थाप दी। लोग कुछ सावधान सी मुद्रा में खड़े हो गये। भवन के द्वार से छः स्त्रियाँ बाहर निकल आयीं। और मुख्य सिंघासन के समीप स्थित छोटे सिंहासनों के सामने आ कर खड़ीं हो गयीं। अंत में एक अत्यंत गरिमा से युक्त स्त्री का पदार्पण हुआ। निसंदेह वो इस कबीले की साम्राज्ञी लग रही थी। उसके आसन पर बैठते ही मंचासीन सभी स्त्रियाँ यथास्थान बैठ गयीं। जनता भी अपने-अपने स्थान पर बैठ गयी। जिस व्यक्ति के नेतृत्व में अमर -मानसी को यहाँ लाया गया था उसने अपनी भाषा में साम्राज्ञी से कुछ कहना शुरू कर दिया। सभी के चेहरे पर गम्भीर भाव  थे। रानी ने अपनी ही भाषा में अमर-मानसी से कुछ पूछा। फिर उसने अपने प्रश्न को पुनः दोहराया। अमर ने अपनी अनभिज्ञता दिखाते हुये आकाश की ओर इशारा किया। सभी लोग ऊपर देखने लगे। फिर वो ऊपर कभी इन दोनों को देखते। अमर को लगा हर भाषा में घुटने टेकना समर्पण की ही निशानी होगी। उसने मानसी से घुटने के बल बैठते हुये साम्राज्ञी के सामने नतमस्तक होने के लिये कहा। और स्वयं नतमस्तक हो गया। उसकी देखा-देखी मानसी ने भी वही मुद्रा दोहरा दी। साम्राज्ञी ने अपने दायें और बायीं ओर बैठी औरतों को कुछ आदेश दिया। फिर उसने पुरुष सिपहसालार को भी कुछ आदेश दिया। एक स्त्री भवन के भीतर चली गयी और दूसरी स्त्री व पुरुष तलवार नुमा अस्त्र लेकर अमर-मानसी की ओर बढ़ गए। उन्होंने तलवार की नोक अमर और मानसी के सीने पर रख दी। 

(क्रमशः)

- वाणभट्ट



    

शनिवार, 4 जनवरी 2014

मिशन जीवन - II

मिशन जीवन - II

मिशन जीवन प्रारम्भ हुए १५० वर्ष बीत चुके थे। लगभग ७५ वर्षों तक चन्द्र और पृथ्वी अंतरिक्ष केन्द्रों से अमर और मानसी का संवाद बना रहा। जब तक डॉ  संदीपन जीवित रहे उन्होंने चन्द्र केंद्र पर ही जीवन व्यतीत किया। ये मिशन उनका स्वप्न था जिसे वो सफल होते देखना चाहते थे। परन्तु ये उनके जीवन काल में सम्भव न था। पृथ्वी से संपर्क टूटने के बाद अमर-मानसी की स्थिति किसी ग्रह पर स्थित जीवन जैसी ही हो गयी थी। सिवाय इसके कि यह ग्रह १०००००० मी प्रति सेकेंड की गति से अंतरिक्ष में बढ़ा चला जा रहा था। जबकि अन्य सभी ग्रह और तारे अपने-अपने पूर्व निर्धारित मार्ग पर चलने को विवश थे। इस ग्रह पर जीवन था जो अन्य ग्रहों पर जीवन की खोज में निकला था। जैसा डॉ संदीपन ने बताया था इन्हें एक सीधे मार्ग का अनुसरण करना था। अंतरिक्ष में यदि कोई वाह्य बल न हो तो दिशा परिवर्तन कि सम्भावनाएं नगण्य होतीं हैं। 

अमर और मानसी का जीवन सांसों की गणित पर आधारित था। अंतः उनका मुख्य कार्य अपनी सांसों का नियंत्रण ही था। अभ्यास के द्वारा वे अब एक साँस में दो मिनट तक सहजता से रह सकते थे। इस मानसिक खेल में उनकी भाव-भंगिमा यंत्रवत हो कर रह गयी थी। कोई भी अनावश्यक गतिविधि उनके लिए वर्जित तो नहीं पर निषिद्ध थीं। अनावश्यक रूप से उन्हें पलकें न झपकाने का भी प्रशिक्षण दिया गया था। उन्हें अपनी भावनाओं पर भी नियंत्रण रखना था। किसी भी प्रकार की उत्तेजना उनकी श्वसन प्रक्रिया को बढ़ा सकती थी। उनका मुख्य शगल था साँसों को अधिकाधिक देर रोके या छोड़े रखना या इन्फ्रारेड टेलिस्कोप की सहायता से अंतरिक्ष में जीवन को तलाशना। उन्हें उम्मीद थी किसी तारे की कक्षा में अवस्थित ग्रहों पर पृथ्वी जैसे वातावरण की उपस्थिति। मुख्य रूप से उन्हें किसी नीले या हरे ग्रह की खोज करनी थी। उनकी आँखें सदैव इन्हीं रंगों की तलाश में थीं। दोनों ने अपने सोने और जागने के क्रम को इस प्रकार व्यवस्थित किया था कि दोनों में से एक हमेशा सजग रह सके। उनके लिए एक और चीज़ निषिद्ध थी एक-दूसरे का आई कॉन्टैक्ट यानि नेत्र सम्पर्क।

एक दिन मानसी ने अमर को अपनी ओर विचित्र दृष्टि से निहारते हुए पाया। वो अमर के व्यवहार में परिवर्तन कुछ दिनों से महसूस कर रही थी। उसे अमर की मनःस्थिति भाँपने में देर नहीं लगी। स्त्रियों की छठीं इंद्री लोगों के विचारों का अनुमान लगाने के लिए कुछ ज्यादा ही विकसित होती है। एक मीठी झिड़की देते हुए उसने अमर से कहा अभी बहुत ज़िंदगी पड़ी है। भावावेश में अपनी सांसों को व्यर्थ न करो। हमें अपने मिशन के अंतिम चरण तक पंहुचने का प्रयास करना होगा। नए ग्रह पर हम अपने विश्वास को मूर्त रूप दे पाएंगे। तब तक धैर्य ही हमारा अस्त्र है।

अमर और मानसी की मित्रता एवियोनिक्स में डिग्री के प्रथम वर्ष में ही आरम्भ हो गयी थी। उसी समय डॉ संदीपन ने अपने छात्रों के सम्मुख मिशन जीवन का जिक्र किया और आह्वाहन किया ऐसे युगलों का जो इस मिशन में काम करने के इच्छुक हों। पूरे एवियोनिक्स और एरोस्पेस इंजीनियरिंग के छात्रों में तीन युगलों ने अपने नाम इस मिशन के लिए दिये। इसके बाद उन्हें चार सालों के अंतरिक्ष अभियांत्रिकी, वैमानिकी, योग और श्वसन क्रिया पर कड़े और कठिन प्रशिक्षण कार्यक्रम में सम्मिलित कर लिया गया। प्रथम मिशन के लिए अमर और मानसी की जोड़ी ने सभी परीक्षाओं में उच्चतम अंक प्राप्त किये। इस चयन में श्वसन क्रिया और स्वास्थ्य को सबसे महत्वपूर्ण माना गया। मिशन का मुख्य उद्देश्य लोंजिविटी यानि दीर्घ आयु प्राप्त करना था। इसलिए डॉ संदीपन ने मिशन जीवन के प्रथम अभियान में इनको स्थान दिया। अन्य दो टीमों के लिये इस मिशन में सम्भावनाओं का पटाक्षेप हो गया। सभी प्रतियोगियों ने चन्द्रमा पर स्थानांतरित होने से पूर्व इस मिशन की कामयाबी के लिये अमर-मानसी को बधाई और शुभकामनाएं दीं।

यान अपनी गति से बढ़ा जा रहा था। कई बार यान उल्काओं से टकराने वाला था। परन्तु दोनों ने उसे अपनी सहज व त्वरित बुद्धि से बचा लिया। एक बार तो यान एक श्याम विवर यानि ब्लैक होल की चपेट में लगभग आ ही गया था। अमर और मानसी ने प्रणोदन यानि प्रोपल्शन यूनिट की सारी शक्ति उस विवर के गुरुत्वाकर्षण के विरुद्ध झोंक दी। ये सन्योग ही था कि यान के संवेदी यंत्र ने जब वाह्य गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र की चेतावनी दी उस समय दोनों जागृत अवस्था में थे। स्पेस एविएशन सेण्टर पर उन्हें सेकण्ड के हज़ारवें हिस्से से भी कम समय में निर्णय लेने के लिए प्रशिक्षित था। वैमानिकी के सभी गुर उनकी मूल प्रवृत्ति यानि बेसिक इंस्टिंक्ट में आत्मसात कर चुके थे। अन्यथा १०००००० मी/सेकेण्ड की गति पर चालकों की जरा सी भूल इस पूरे मिशन पर पानी फेर सकती थी। 

दो-ढाई सौ साल से नीरस जीवन व्यतीत करना किसी आम इंसान के बस की बात नहीं थी। मिशन के प्रति प्रतिबद्धता, संयमित दिनचर्या और कड़ा प्रशिक्षण इन दोनों को विशिष्ट बनाती थी। विशिष्ट मिशन के लिए विशिष्ट व्यक्तियों की आवश्यकता होती है। पृथ्वी से संपर्क टूटने के बाद भी दोनों के लिये मन में कोई नकारात्मक विचार लाने की सम्भावना नहीं थी। नकारात्मक ऊर्जा उनकी आयु को प्रभावित कर सकती थी। उनका मानसिक खेल सदैव उन्हें व्यस्त रखता। उन्हें विश्वास था कि वे धरती के अलावा किसी अन्य ग्रह पर जीवन खोजने में सक्षम होंगे। डॉ संदीपन का मिशन अब उनका मिशन था। मंद मेटाबोलिक रेट के कारण उनके शरीर में किसी भी प्रकार के जीर्णन का प्रभाव गोचर नहीं था। जबकि उतने ही समय में धरती पर दो-तीन पीढ़ियाँ अपना अस्तित्व खो चुकीं थीं। इस बात का संज्ञान अमर और मानसी के लिए संजीवनी का काम करता। आचार-विचार और श्वसन तन्त्र का सदुपयोग कैसे जीवनी शक्ति को विकसित  कर सकता है ये भारत के ऋषि-मुनियों को सदियों से ज्ञात था। विज्ञान और वैदिक ज्ञान इस मिशन के मूलभूत आधार थे। डॉ संदीपन और इसरो के प्रमुख वैज्ञानिकों को इसका सम्पूर्ण श्रेय दिया जाना चाहिये। अंतरिक्ष शोध में पृथ्वी के कई देश भारत की तकनीकी क्षमता के समतुल्य अवश्य थे, परन्तु दीर्घ आयु प्राप्त करने के लिये उनके पास कोई प्रणाली नहीं थी। आयु संवर्धन के वैदिक ज्ञान ने भारत को अन्य विकसित देशों से अग्रणी कर दिया।

मानसी ने लगभग झकझोरते हुए अमर को योग निद्रा से जगा दिया। अमर उठो और जल्दी देखो हरा ग्रह। हमें तुरंत यान की दिशा को मोड़ना होगा। वे अब तक तीसरे तारे की परिक्रमा कक्ष में प्रवेश कर चुके थे। एस्ट्रोनॉमी के अनुसार यह खगोलीय पिण्ड सूर्य के निकटस्थ तीसरे तारे अल्फा सेंटिनो के चौथे ग्रह जिबेका का एक उपग्रह था। जैसे धरती के लिए चाँद परन्तु ये अपनी धूरी पर घूम रहा था। अमर के निर्देश पर यान में लगे परम संगणक ने गणनाएं प्रारम्भ कर दीं। आकार में ये पृथ्वी से १.५ गुना बड़ा था। ये पिण्ड ४० घंटे में अपने स्थान पर एक चक्कर लगा लेता है। यानि यहाँ दिन-रात २० घंटे के होंगे। अपने मूल ग्रह जिबेका की परिक्रमा ये पिण्ड ३७५ दिन में पूरी कर लेता है। और जिबेका अपने सूरज अल्फा सेंटिनो के चारों ओर परिक्रमा ७२५ दिन में पूरी कर लेगा। अमर और मानसी के लिये ये क्षण यूरेका मोमेंट से कम नहीं था। तुरंत उन्होंने अपने यान कि दिशा उस हरे ग्रह की ओर मोड़ दी। इस पिंड का नाम रखा गया - अर्थेरा। 


Green Planet
अर्थेरा 
(चित्र साभार : http://www.zastavki.com/eng/Space/wallpaper-31236.htm) 

पचास सालों की यात्रा में अमर-मानसी ने उस हरे खगोल पिण्ड, अर्थेरा, को टेलिस्कोपिक आई से एक पल भी ओझल नहीं होने दिया। जैसे-जैसे वो इस पिंड के निकट आते जा रहे थे उनका विश्वास उस ग्रह  पर जीवन की सम्भावनाओं को लेकर बढ़ता ही जा रहा था। टेलिस्कोप से उन्होंने उस ग्रह पर समुद्र और धरती दोनों की उपस्थिति का भान हो चुका था। उस ग्रह में हरे रंग की उपस्थिति वनस्पतियों की उपलब्धता की ओर इंगित कर रही थी। अब बस ये देखना था कि यहाँ भी पानी जैसे पदार्थ की रासायनिक संरचना H2O ही है। ऑक्सीजन ही यहाँ प्राणवायु है या नहीं। पृथ्वी पर जितने तत्वों और यौगिकों की उपस्थिति ज्ञात की जा चुकी है, ब्रम्हांड में उससे अधिक अवयवों की सम्भावनाएं नगण्य हैं। परन्तु नए ग्रह के जीवन के विषय में मात्र अनुमान ही लगाया जा सकता है। हो सकता है वहाँ जीवन नाइट्रोजन से चलता हो। और वनस्पतियाँ अम्लीय या क्षारीय माध्यम में जीवित रहतीं हों। अमर-मानसी के अंतःकरण में इस उलटी अवस्था की  सम्भावना नगण्य थी किन्तु सुरक्षा की दृष्टि से ये तय करना आवश्यक था। 

यान को अर्थेरा की वाह्य कक्षा में स्थापित करने के पश्चात अमर और मानसी ने लघु यान के द्वारा अर्थेरा पर जाने का निर्णय लिया। मुख्य यान ग्रह की वाह्य कक्षा में परिक्रमा करता रहेगा, जबकि छोटे यान की सहायता से वे लोग अर्थेरा की धरती पर उतरेंगे। यदि जीवन की संभावनाएं मिलतीं हैं तो वे वहाँ २०-२५ साल जीवन व्यतीत करके अपनी वापसी यात्रा पर लौट चलेंगे। दोनों ने छोटे यान में बैठने के बाद तीन सौ सालों में पहली बार एक-दूसरे की आँखों में डूब कर देखा। उन्हें ये एहसास था कि यह यात्रा या तो एक नए जीवन की शुरुआत हो सकती है या इस जीवन का अंत। 


लघु यान 


(क्रमशः)


 - वाणभट्ट

गुरुवार, 2 जनवरी 2014

मिशन जीवन - I

मिशन जीवन - I

चंद्रमा की सतह पर एक अत्याधुनिक भवन के सभा कक्ष में इसरो के कई मुख्य वैज्ञानिक और अधिकारी भारत के प्रधानमंत्री के साथ मीटिंग में व्यस्त थे। जब से चंद्रयान ने चंद्रमा पर पानी होने की पुष्टि की, भारत का अंतरिक्ष मिशन काफी आगे निकल चुका है। ऑॅक्सीजन की जीवनी और हाइड्रोजन की ऊर्जा शक्ति दोनों को मिला कर इसरो ने चंद्रमा पर ही अपना अंतरिक्ष प्रक्षेपण केंद्र स्थापित कर दिया। इस प्रकार पृथ्वी के वातावरण और गुरुत्वाकर्षण से निकलने में जो ऊर्जा व्यय हो जाती थी उसका उपयोग यान को गति देने में किया जा सकता था। चन्द्रमा से प्रक्षेपण करने पर पृथ्वी से छह: गुना ज्यादा गति प्राप्त की जा सकती थी। इस नए मिशन के लिए यान को पृथ्वी की तुलना में १०० गुना अधिक एस्केप वेलोसिटी के लिए डिज़ाइन किया गया था। गणनाओं के अनुसार चंद्रमा से १००० किमी प्रति सेकेण्ड की स्पीड प्राप्त करना कठिन न होगा। मिशन का उद्देश्य अनंत अंतरिक्ष में गोता लगाने के सामान था। एक दिशा में बढ़ते हुए ब्रम्हांड में किसी जीवन की तलाश। योजना 'राह पकड़ तू एक चलाचल पा जायेगा मधुशाला' से प्रभावित जान पड़ती थी। लक्ष्य था ४०० साल तक यान को आगे ले जाना और उतना ही समय वापसी के लिए नियत किया गया था। निकटस्थ तारों में जीवन की सम्भावनाएं खोजने के लिए तक़रीबन ३५० वर्षों का समय लगाने कि सम्भावना थी। चंद्रमा से प्रक्षेपण का ये पहला मिशन था। इसे ले कर सभी वैज्ञानिक उत्साहित थे। प्रधानमंत्री और पूरा देश भी इस प्रोजेक्ट में विशेष रूचि रखते थे। मिशन के मुखिया डॉ  संदीपन ने प्रोजेक्ट की पूरी रूप रेखा प्रधानमंत्री महोदय के समक्ष प्रस्तुत की।

अंतरिक्ष यान चार मुख्य इकाइयों का संयोजन था। पहला गाइड यूनिट : यान की दिशा पर नियंत्रण हेतु। इसमें यान चालकों के लिए कॉकपिट और रहने की व्यवस्था थी। इस यूनिट में ऑक्सीजन और तापमान का स्तर पृथ्वी के हिसाब से डिज़ाइन किया गया था। इसके फ्रंट एंड पर लगा था, इन्फ्रारेड गाइडेड टेलिस्कोप जो एक प्रकाश वर्ष दूरी तक आकाश के भीतर देख सकने की क्षमता से लैस था। इसकी सहायता से चालक को यान की दिशा नियंत्रण का निर्णय करने में मदद मिलती। गाइड यूनिट से ही लगी हुयी ट्रैकिंग यूनिट थी। इस यूनिट का कार्य स्पेस में यान की स्थिति को स्पष्ट करना, हाई रेजोल्यूशन कैमरे से यान के यात्रा मार्ग के चल-चित्र भेजना और वापस लौटते समय जाने वाले मार्ग को ट्रैक करते हुए ऑटो मोड में यान को वापस पृथ्वी की कक्षा तक लाना। तीसरा यूनिट फ्यूल या ईंधन के लिए समर्पित था।  मुख्य रूप से ये पानी का वृहद् टैंक था। जिसके साथ एक हाइड्रोजन-ऑक्सीजन स्प्लिटिंग डिवाइस लगी थी। जो फ्यूल या ऑक्सीजन की आवश्यकता के अनुसार पानी को विभाजित कर लेती थी। निर्वात में एक बार गति प्राप्त कर लेने के बाद किसी तरह का घर्षण का होने के कारण यान की गति में कोई ह्रास नहीं होता। ईंधन का उपयोग सिर्फ यान की दिशा में परिवर्तन के लिए करना था। ये स्प्लिटर यान के कक्ष में ऑक्सीजन का स्तर बनाये रखता था। चौथी यूनिट फ़ूड यानि खाद्य यूनिट थी। मिशन के यात्रियों के ऊर्जा या कार्य शक्ति को बनाये रखने के लिए भोजन आवश्यक था। भोजन का मुख्य स्रोत नूट्रीशनली एनरिच्ड टेबलेट्स थीं और पीने के लिए एनर्जी ड्रिंक्स। इस यान में एक विशेष लघु अंतरिक्ष यान की भी व्यवस्था की गयी थी। मुख्य यान को ग्रहों की वाह्य ऑर्बिट में छोड़ कर जीवन की तलाश में ग्रह के वातावरण में प्रवेश किया जा सकता था। इस लघु यान में लगीं प्रोब्स के द्वारा उस ग्रह  के वातावरण के आंकड़ों के आधार पर जीवन की सम्भावनाओं को सुनिश्चित किया जा सकता था। आवश्यकता पड़ने पर इसे किसी ग्रह की भूमि पर उतारना और उसे वापस मुख्य यान तक वापस लाना सम्भव था। खाद्य यूनिट के बारे में वैज्ञानिकों ने सूचना गुप्त रखी थी। उन्हें डर था कि यदि मैन-मिशन की खबर लीक कर गयी तो पूरे विश्व के मानव वादी संगठन इस अभियान का विरोध शुरू कर देंगे।

यान की संरचना की संक्षिप्त जानकारी देने के बाद डॉ संदीपन ने गम्भीर लहजे में कहना शुरू किया। मिस्टर प्राइमिनिस्टर हम इस मिशन पर पूरे ५०० मिलियन डॉलर खर्च कर रहे हैं। ये मिशन अगले ६००-८०० सालों के लिए है। ये हम सभी पृथ्वी वासियों के लिए जीवन में एक बार वाला मिशन है। महोदय इसलिए मै आपसे कुछ सीमाओं के आगे जाने की अनुमति चाहता हूँ। हम इसे मैन-मिशन बनाना चाहते हैं। अब तक मानव रहित यानों को चंद्रमा से आगे भेजा गया है। ये अभियान मानव सहित ब्रम्हांड की अथाह गहराइयों में खोज के लिए आरम्भ किया गया है। अंतरिक्ष में यान भेज देने से हमारा काम सिर्फ फ़ोटो तक ही सीमित रह जाता है। यान यदि किसी अन्य ग्रह के गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव में आ जाये तो उसका मिशन वहीँ समाप्त समझिये। यदि हम इसमें किसी मानव को भेजते हैं तो निश्चय ही यान पर नियंत्रण बनाये रखना आसान हो जायेगा। यान में लैस इन्फ्रारेड टेलीस्कोप की सहायता से चालक अधिकतम एक लाइट इयर दूर तक देख सकता है और उसी के अनुसार अपनी यात्रा की दिशा निर्धारित कर सकता है। ये सुविधा अनमैन्ड मिशन में नहीं मिल सकती। उसे धरती या चंद्रमा पर स्थित कंट्रोल रूम से ही चालित करना पड़ता है।अंतरिक्ष रूपी समुद्र में यदि जीवन तलाशना है तो हमें गोता लगाने जैसा है। आप अंतरिक्ष में जितना अंदर घुसते जाएगे ब्रम्हांड में जीवन के खोज की सम्भावनाएं उतनी बढती जाएंगी। हाँ लौट के वापस आने की सम्भावना भी उतनी ही क्षीण होती जायेगी। पर मुझे उम्मीद है कि हमारे वैज्ञानिकों द्वारा तैयार की रिवर्स ट्रैकिंग डिवाइस की सहायता से यान सकुशल वापस आ सकेगा। यदि मानव जीवित लौट आता है तो न सिर्फ भारत कि अपितु सम्पूर्ण मानव जाति के लिए अनमोल उपलब्धि होगी।

प्रधानमंत्री की व्यग्रता बढती जा रही थी। संदीपन जी आप क्या कहना चाहते हैं। निकटतम तारे की कक्षा में घुसने में हमें ३५० साल लगते हैं और एक आदमी को जो सौ-पचास साल में ख़त्म हो जायेगा हम उस यान में भेज दें। ये तो जान बुझ कर किसी को मौत के मुंह में धकेलने जैसा है और आप इस पर मेरी सहमति भी चाहते हैं। नहीं ये कदापि सम्भव नहीं है। सर मै एक नहीं दो लोगों को इस मिशन पर भेजना चाहता हूँ। इसके लिए एक स्त्री और पुरुष युगल को स्पेशल ट्रेनिंग दी गयी है। ये दोनों भारतीय योग पद्यति से एक मिनट में मात्र १-२ साँस प्रति मिनट पर जीवित रह सकते हैं। शुद्ध ऑक्सीजन के साथ ये २-३ मिनट में एक साँस पर भी रह सकते हैं। कम सांसों से शरीर का मेटाबॉलिक रेट कम हो जाता है। ऑक्सीडेशन और फ्री रेडिकल्स की प्रक्रिया क्षीण पड़ जाती है। जिससे उम्मीद है कि ये खुद को ८००-१००० सालों तक जीवित रखने में सफल होंगे। पृथ्वी पर दीर्घ आयु प्राणियों की श्वसन दर अत्यंत कम होती है।कछुए ४-५ श्वांस प्रति मिनट की दर से आसानी से ४००-५०० साल जीवित रह लेते हैं। इस युगल की आयु मात्र २० वर्ष है।  बचपन से इन्हें इसी मिशन के लिए तैयार किया गया है। इन्हें यान चलाने, उसके रख-रखाव और ज़ीरो ग्रेविटी पर रहने का भी प्रशिक्षण दिया गया है। ये कम ऑक्सीजन और जीरो ग्रेविटी पर भी एक सामान्य मानव कि तरह व्यवहार करने में सक्षम हैं। निर्वात और ज़ीरो  ग्रेविटी पर वैसे भी में जीर्णन की गति मंथर पड़ जाती है। ये दोनों भी इस मिशन के प्रति आश्वस्त हैं और तत्पर भी। इन पर किसी तरह की कोई जोर-जबरदस्ती नहीं है। बल्कि ये स्वयं इस पुनीत कार्य में आपका आशीर्वाद चाहते हैं। प्रधानमंत्री जी ने कहा मित्रों मै कैसे अपने होनहारों को जानबूझ कर मौत के मुंह में धकेल दूँ। पर डॉ संदीपन अपनी योजना के प्रति कृतसंकल्प लग रहे थे। उन्होंने कहा यदि लोग ऐसे ही भयभीत हो जाते तो शायद दुनिया गोल है ये पता कर पाना भी मुश्किल होता। अंतरिक्ष में प्रवेश से पहले भी तो ऐसी ही किम्वदंतियां थीं। और हमें ऐसे युवा तैयार करने में भी २० से २५ साल का समय लग जाता है। मेरे विचार से वर्त्तमान ही इस कार्य के संपादन का सर्वश्रेष्ट समय है। आप चाहें तो अमर और मानसी से मिल भी सकते हैं।

अमर, मानसी, डॉ  संदीपन और उनकी प्रतिबद्ध टीम के हौसलों को देखते हुए प्रधानमंत्री जी को इस मिशन को आज्ञा देनी पड़ी और आशीर्वाद भी। पूरा चन्द्र अंतरिक्ष केंद्र ख़ुशी और जश्न के माहौल में डूब गया।


 (क्रमशः)

- वाणभट्ट


(चित्र : साभार http://2.bp.blogspot.com/gqSOnXfNPQc/T1RGhAj9Q6I/AAAAAAAADI0/CTx62mP7Cmo/s400/ring-galaxy.jpg)


संस्कार

संस्कार शब्द जब भी कान में पड़ता है तो हिन्दी-हिन्दू-हिन्दुस्तान का ही ख़्याल आता है. भारत में विशेष रूप से हिन्दुओं के संदर्भ में संस्कार का ...